UPDATE CHANDAULI NEWS: चंदौली निवासी एडवोकेट शिवम उपाध्याय बताते है कि अख़बार में खाना, सस्ता नही बल्कि बेहद नुकसानदायक है। आखिर क्यों ?
आज भी हमारे आस-पास कई ठेलों, दुकानों और ढाबों पर खाने की चीज़ें अख़बार में लपेटकर या रखकर दी जाती हैं। कारण साफ़ है, अख़बार आसानी से मिल जाता है और सस्ता भी होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह सस्ता तरीका हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना महंगा साबित हो सकता है ?
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अखबार में परोसे गए खाने का नुकसान
अख़बार की स्याही में सीसा (lead), कार्बन और अन्य रासायनिक पदार्थ होते हैं। जब गरम या तैलीय खाना उस कागज़ के संपर्क में आता है, तो ये रसायन खाने में घुल जाते हैं। यह धीरे-धीरे हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। पाचन तंत्र, लीवर और यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ा देते हैं।
खाद्य सुरक्षा विभाग से मांगी गई जानकारी
एडवोकेट शिवम उपाध्याय बताते है कि इस विषय पर जानकारी पाने के लिए उन्होंने खाद्य सुरक्षा विभाग (Food Safety Department) से सूचना का अधिकार (RTI) के तहत जानकारी मांगी।
विभाग का क्या है कहना ?
विभाग का जवाब था की “अख़बार में रखे भोजन को लेकर किसी विक्रेता पर कानूनी कार्रवाई की व्यवस्था नहीं है, लेकिन यदि किसी के पास अख़बार में रखा भोजन पाया जाता है तो उसे नष्ट किया जा सकता है।”
कानून में सुधार की जरूरत
यह जवाब बताता है कि हमारे कानून में इस दिशा में सुधार की ज़रूरत है। लेकिन साथ ही यह भी सच्चाई है कि बहुत से छोटे विक्रेता अख़बार इसलिए इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उनके पास दूसरा विकल्प नहीं होता।
क्या है दूसरा विकल्प ?
इसलिए हमें एक साथ मिलकर समाधान ढूंढना होगा। ऐसे में जैसे सस्ती फूड ग्रेड पेपर, भूरा कागज़, या केले के पत्ते का इस्तेमाल बढ़ावा देना कारगर साबित हो सकता है। ग्राहकों को भी आगे बढ़कर विक्रेताओं से कहना चाहिए की “भैया, अख़बार मत लगाइए, मैं अपना डिब्बा लाया हूं।” आपकी छोटा-सा बदलाव बड़ी सुरक्षा ला सकता है। आइए, अपने और समाज के स्वास्थ्य के लिए जागरूक बनें। “अख़बार में नहीं, साफ़ कागज़ में खाना लीजिए!”





