UPDATE CHANDAULI NEWS: बुराई का ताप सच नहीं पिघला सकता। अज़ाखाना-ए-रजा में तीसरी मजलिस, मौलाना ने पढ़े इमाम अली के फजायल। मातमी दस्तों ने पेश की करबला की कहानी, दीन के साथ दुनिया के इल्म पर भी ज़ोर।
इमाम हुसैन खलीफा हजरत अली के पुत्र एंव मुहम्मद साहब के नवासे थे जिनकी याद में मुहर्रम मनाया जाता है। मौलाना ने अपनी हदीस में कहा कि करबला के मैदान में इमाम हुसैन और उनके बहत्तर साथियों की कुर्बानी सिर्फ इस्लाम को बचाने के लिए नहीं थी। इमाम अपनी शहादत के जरिए पूरी इंसानियत को बचाना चाहते थे और उन्होंने ऐसा ही किया। इमाम हुसैन दुनिया में इंसानियत के देवता हैं। यज़ीद अपने झूठ और फरेब को सच कहलाना चाहता था लेकिन इमाम ने उसके झूठ को सच कहने से इनकार कर दिया और बादशाह के आगे घुटने नहीं टेके।
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सच को पिघला नही सकती बुराई
इमाम ने पूरी दुनिया को बता दिया कि बुराई का ताप चाहे जितना भी अधिक हो लेकिन सच को पिघला नहीं सकता। मौलाना ने हजरत अली के फजायल पढ़ते हुए कहा कि अच्छा शासक वो है जिसके राज्य में कोई भूखा न सोए, जहां गरीब और अमीर के बीच भेद न किया। मुसलमानों के खलीफ़ा हजरत अली का शासनकाल ऐसा ही था। हजरत अली खुद ये सुनिश्चित करते थे कि उनके राज्य में किसी के साथ ज्यादती न हो।
अज़ाखाना-ए-रज़ा में कई प्रमुख अंजुमनें
रविवार को अज़ाखाना-ए-रज़ा में जिले और बाहर से आई कई प्रमुख अंजुमनें मौजूद रहीं। इनमें अंजुमन नासेरूल मोमेनीन, मुकीमगंज बनारस, अंजुमन सदा ए हक़ कटेसर, अंजुमन अब्बासिया सिकंदरपुर और अंजुमन जव्वादिया मख़दूमाबाद लौंदा प्रमुख रहीं जिन्होंने अपने मसायबी नौहों के जरिए इमाम हुसैन के बलिदान को याद किया। बड़ों के साथ-साथ छोटे-छोटे बच्चों ने भी मातमी धुन पर इमाम हुसैन उनकी बहन जैनब और भाई हजरत अब्बास की मुसीबतों का मंजर पेश किया। अंजुमन ने नौहे के जरिए न सिर्फ कर्बला की कहानी पेश की गई बल्कि आम जनमानस से सच्चाई की राह पर चलने का होने का संदेश भी दिया गया। मौलाना ने अपनी तकरीर में कहा कि दीन और धर्म के साथ साथ हर किसी को दुनिया के इल्म पर भी जोर देना चाहिए। दीन जितना जरूरी है दुनिया भी उतनी ही जरूरी है। इसलिए सभी धर्मों में इंसानियत, भाईचारे जैसी बातों को ज्यादा तवज्जो दी गई है।
कभी नहीं छोड़ने चाहिए मानवीय गुण
मौलाना ने अपनी मजलिस के जरिए कहा कि इंसान को अपने मानवीय गुण कभी नहीं छोड़ने चाहिए क्योंकि ये गुण उसे अल्लाह ने दूसरों की भलाई के लिए दिए हैं। अपने धर्म पर चलना अच्छी बात है लेकिन इस बात को भी अच्छी तरह से समझना चाहिए कि मानवता सबसे बड़ी है, इसका स्थान अव्वल है। अजाखाना ए रजा की मजलिस के दौरान मोहम्मद रज़ा. जीशान हैदर, सैयद अली इमाम, ताबिश, मायल चंदौलवी, वक़ार सुल्तानपुरी, शहंशाह मिर्जापुरी, मोहम्मद रजा, रियाज अहमद, सरवर, वसीम भाई मोहम्मद इंसाफ़ काशिफ इत्यादि मौजूद रहे।