UPDATE CHANDAULI NEWS: इंसानी रिश्तों की मिसाल है करबला। अपने दुश्मन से भी झुककर मिलना है इस्लाम की सीख। पांचवी मजलिस में निकला अलम और ताबूत।
चंदौली के अज़ाख़ाना-ए-रज़ा में आयोजित मुहर्रम की पांचवी मजलिस में आज अलम और ताबूत निकाला गया। अज़ादारों ने अलम और ताबूत को चूमकर दुआएं मागीं और इमाम हुसैन की अजीमुश्शान कुर्बानी को अपनी खिराजे अकीदत पेश की। पांचवीं मजलिस को खिताब फरमाते हुए मौलाना मोहम्मद मेंहदी ने करबला की दास्तान को इंसानी रिश्तों के लिए एक मिसाल बताया। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन के बहन जैनब भाई अब्बास बेटे अली अकबर समेत एक एक व्यक्ति ने मुसीबत के वक्त जुटकर और अपने प्राणों का बलिदान देकर साबित किया कि इंसानी रिश्ते असल में कैसे होने चाहिए।
CHANDAULI NEWS: ALSO READ
Chandauli news: एक्शन में परिवहन विभाग।
Chandauli news: मातमी दस्तों ने पेश की करबला की कहानी।
इस्लाम के मकसद पर प्रकाश
मौलाना ने इस्लाम के मकसद पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भाईचारा और देशप्रेम इस्लाम की शिक्षाओं का प्रमुख अंग है। रसूले पाक का कहना था कि अपने दुश्मन से भी इतना झुककर मिलो की वो दुश्मनी भूलकर गले मिल जाए। उन्होंने रसूल हदीस और कुरान शरीफ की आयतों के जरिए बताया कि वैमनस्यता फैलाना कभी भी इस्लाम का हिस्सा नहीं रहा। जो लोग समाज को बांटने का काम करते हैं वो किसी भी सूरत में सच्चे मुसलमान नहीं हो सकते। उन्होंने अपनी हदीस के जरिए ये भी कहा कि रसूले पाक ने हमेशा देश प्रेम की वकालत की इसलिए अपने मुल्क से मुहब्बत करना हर मुसलमान का फर्ज है।
पढ़ी गयी शहादत की दास्तान
पांचवीं मुहर्रम के मौके पर मौलाना ने इमाम हुसैन के भाई हजरत अब्बास के मसायब पढ़ते हुए उनकी शहादत की दास्तान पढ़ी। हजरत अब्बास इमाम हुसैन के सौतेले भाई थे लेकिन उन्होंने करबला की लड़ाई में इमाम का कमांडर बनकर जंग लड़ी और छोटे छोटे बच्चों के लिए पानी लाने की कोशिश करते हुए शहीद हो गए। वहीं जनाबे अली अकबर के ताबूत की अज्मत बयान करते हुए मौलाना ने बताया कि जनाबे अली अकबर इमाम हुसैन के बेटे थे और उनकी शक्ल मुहम्मद साहब से इतनी ज्यादा मिलती थी कि उन्हें शबीहे पयंबर कहा जाता था। करबला के मैदान में उन्हें बरछी भोंककर मार डाला गया।
हुसैन की कुर्बानी को याद
बनारस से आई अंजुमन गुलज़ारे अब्बासिया ने अपने मातमी नौहों से अजादारों को रोने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बाद इस दौरान दुलहीपुर की अंजुमन नासेरूल अज़ा ने नौहाख्वानी और मातम कर इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद किया। इस दौरान वाराणसी, मिर्जापुर, सिंकदरपुर, डिग्घी, लौंदा समेत नगर के तमाम अज़ादार बड़ी संख्या में मौजूद रहे।